Field Marshal Sam Manekshaw Biography in Hindi | Sam Bahadur Biography in Hindi
नमस्कार दोस्तों, आपका Shridas K Motivation ब्लॉग पर स्वागत है। दोस्तो आज का यह आर्टिकल आपके लिए बहुत ही प्रेरणादायक साबित होने वाला है। क्योंकि इस आर्टिकल के जरिये में आपके साथ भारत के सबसे खतरनाक सैनिक सैम मानेकशॉ का जीवन परिचय हिंदी में शेयर करने वाले हैं। इसीलिए इस आर्टिकल को आखिर तक जरूर पढ़िए।
Field Marshal Sam Manekshaw Biography in Hindi | सैम मानेकशॉ की जीवनी
दोस्तो आपने 1971 में लढ़े गए युद्ध के बारे में तो सुनाई ही होगा, जहा हमारे देश के वीर जवानों ने पाकिस्तान के 93000 सैनिकों को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया था। और ये भारत द्वारा पाकिस्तान पर दर्ज की गई इतिहास की सबसे बड़ी जीत थी।
यू तो इस जीत का श्रेय हमारे भारत के सभी वीर जवानों को दिया जाता हैं। लेकिन उस जीत का श्रेय किसी एक जवान को दिया जाए तो ऐसे में सैम मानेकशॉ जी का नाम सबसे ऊपर आता है। जो की 1971 के युद्ध के दौरान भारतीय सेना के प्रमुख थे।
दोस्तो सैम मानेकशॉ जी वो सिपाई थे जिन्होंने अपने कैरियर में वर्ल्ड वॉर से लेकर 1971 के जंग तक कुल मिलाकर 5 युद्ध लड़े। लेकिन किसी भी लढाई में उन्होंने कभी हार का सामना नहीं किया। वे जाबाज होने के साथ ही बेहद चालाक और युद्धनीति में भी बहुत माहिर थे।
साथ ही वे देश के पहले ऐसे इंडियन आर्मी थे, जिन्हे की फील्ड मार्शल नामक जैसे बड़े पद से सम्मानित किया गया था। और इस आर्टिकल में भी हम आपको सैम मानेकशॉ जी के जीवन की उसी वीरता भरी कहानी के बारे में बताने वाले हैं, जिन्हे जानकर आपका भी सिन्हा गर्व से चौड़ा हो जायेगा।
दोस्तो सैम मानेकशॉ की कहानी इतनी प्रेरणादायक है की उनके जीवन के उपर Sam Bahadur नाम की एक मूवी भी आ चुकी है। तो बिना समय गंवाए चलिए सैम मानेकशॉ की कहानी को शुरुआत करते है।
सैम मानेकशॉ की कहानी – Sam Manekshaw Real Story in Hindi
दोस्तो सैम मानेकशॉ जी का जन्म 3 अप्रैल 1914 के दिन पंजाब के अमरीतसर में रहने वाले एक पारसी परिवार में हुआ था। और आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सैम मानेकशॉ जी आज हमारे भारतीय आर्मी का इतना बड़ा नाम माने जाते हैं, वो असल में सेना का हिस्सा कभी बनना ही नहीं चाहते थे।
क्योंकि उनका सपना अपने पिता की तरह डॉक्टर बनने का हुआ करता था। दरअसल सैम जी की उम्र जब 15 साल की हुई थी, तब उन्होंने अपने पिता से आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए विदेश जाने की जिद्द की, लेकिन उनके पिता ने उनको विदेश भेजने से साफ इंकार कर दिया।
अब च्युकी सैम जी बचपन से ही बेहद अकड़ और गुस्सेले स्वभाव के बच्चे थे, ऐसे में अपने पिता से विदेश न भेजे जाने पर उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। और इसी गुस्से के कारण उन्होंने अपना डॉक्टर बनने का सपना छोड़ दिया और सेना में भर्ती होने का एग्जाम दे दिया। और इस एग्जाम को पास करने के बाद से 1932 में उन्होंने Indian Military Academy को ज्वाइन कर लिया।
सैम मानेकशॉ का कैरियर – Sam Manekshaw Career
दोस्तो इस तरह से अपनी ड्रीम जॉब न होते हुए भी मिलिट्री ही सैम मानेकशॉ जी का कैरियर बन गई। यह वो समय था जब हमारा भारत देश आजाद भी नही हुआ था। और तब हमारी भारतीय सेना अंग्रेजो के लिए जंग लढा करती थीं। यहां तक की हमारे भारतीय सेना को भी ब्रिटिश इंडियन आर्मी नाम से ही जाना जाता था।
उसके बाद जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ तब सैम मानेकशॉ जी ब्रिटिश इंडियन आर्मी में कैप्टन का पद हासिल कर चुके थे। इसीलिए दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना के तरफ से अहम भूमिका निभा रहे थे। साल 1942 के द्वरान जब सैम मानेकशॉ जी बर्मा देश के अन्दर अपने जवानों को जापान के सैनिकों के खिलाप लीड कर रहे थे, तभी वे एक मशीन गन का शिखार हो गए।
तब उनके पेट में कई सारी गोलियां लगी हुई थी और उनका पूरा शरीर खून से लथपथ हो चुका था, लेकिन फिर भी उन्होने गुठने नही टेके और लगातार दुश्मनों को अपने गोलियों का शिकार बनाते रहे। ब्रिटिश आर्मी का कमांडर मेजर जनरल डेविड कोवान इस नजारे को अपनी आंखो से देख रहा था और सैम मानेकशॉ की वीरता से बहुत प्रभावित हुआ।
और वो दौड़ता हुआ उनके पास गया और अपनी यूनिफॉर्म से खुद का मिलिट्री क्रॉस निकालकर सैम मानेकशॉ जी के वर्दी पर लगा दिया। उस समय सैम मानेकशॉ जी की हालत देखकर सभी को यही लग रहा था की वो अभी जिंदा बिलकुल भी नहीं बच पाएंगे। इससे की पहले उन्हें कुछ होता, वहा पर शेरसिंग नाम के एक सिपाई आ पहुंचते हैं।
और उन्हें अपने कंधे पर उठाकर उस खतरनाक गालीबार के बीच से बाहर निकाल लाए और तेजी से दौड़ते हुए सैम जी को एक एस्ट्रोलियन डॉक्टर के पास ले गए। जब डॉक्टर ने सैम मानेकशॉ जी की हालत देखी, तब उन्होंने यह कहते हुए उनका इलाज करने से मना कर दिया की उनके बचने के चांसेस ना के बराबर है।
दरअसल डॉक्टर को सैम मानेकशॉ जी की बच पाने की उम्मीद बिलकुल भी नहीं थी और इसी कारण वे उनका इलाज करने में अपना समय वेस्ट नही करना चाहते थे। लेकिन जब शेरसिंग जी ने उनको सैम जी का इलाज करने के लिए फोर्स किया, तब आखिर कार डॉक्टर ने यह चेक करने के लिए की सैम मानेकशॉ जी कितने होश में है, इसीलिए उन्होंने जान बूझकर उनसे यह सवाल पूछा कि नौजवान तुम्हे क्या हुआ है?
तब दोस्तो उस सवाल का जवाब देते हुए सैम मानेकशॉ जी बोले की मुझे एक खच्चर ने लाथ मारी हैं और यह जवाब सुनकर डॉक्टर के भी चेहरे पर भी हसी आ गई और वे उनका इलाज करने के लिए राजी हो गए। दोस्तो आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सैम मानेकशॉ जी को लंग्स, लिवर और किडनी में कुल मिलाकर ७ गोलियां लग चुकी थी।
और इतनी बुरी तरह घायल होने के बावजूद भी सैम जी का जिंदा बच पाना किसी चमत्कार से कम नहीं था। उसके बाद 1947 में भारत के आजाद होने और भारत पाकिस्तान विभाजन होने के बाद से सैम मानेकशॉ जी को गोरखा रेजीमेंट्स में पोस्ट कर दिया। क्योंकि इससे पहले जिस रेजीमेंट्स में थे, वह विभाजन होने के बाद से पाकिस्तान का हिस्सा बन गई थी।
दोस्तो हमेशा से ही मानेकशॉ जी खुली जुबान वाले इंसान थे, जो की अपनी किसी भी बात को कहने से कभी नहीं चूकते थे। और यही वजह थी की वे अपने सीनियर और राजनेताओं के साथ में उनकी कोई खास नहीं बनती थीं। लेकिन उनके इसी स्वभाव के लिए वे अपने सिपाइयो में काफी लोकप्रिय थे।
दोस्तो हर जवान उनका सच्चे दिल से सम्मान करता था। यू तो सैम मानेकशॉ जी अपने लाइफ में एक से बढ़कर एक मुश्किलें और मुसीबतों का सामना कर चुके थे। लेकिन उनके जिंदगी के सबसे कठिन चुनौती उनके सामने तब आयी, जब भारतीय सेना के सबसे सीनियर कमांडर होने के नाते साल 1969 में उन्हे आर्मी चीफ बना दिया गया।
दरअसल हुआ यह था की पूर्वी पाकिस्तान के सैनिकों का हमारे लोगो पर अत्याचार इस हद तक बढ़ गया था की वे लोग अपनी जान बचाने के लिए भारत की तरफ़ पलायन करने के लिए मजबूर हो गए थे। इस मामले की गंभीरता को समझते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैम मानेकशॉ जी के साथ एक मीटिंग की और पाकिस्तान को एक मु तोड़ जवाब देने के लिए कहा।
असल में इंदिरा गांधी जी चाहती थीं की यह युद्ध जीतना जल्द हो सके शुरू हो जाए। लेकिन सैम जी के अनुसार उस समय जंग शुरू करना, भारत देश के लिए उचित नहीं था। क्योंकि तब हमारा दुश्मन सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं बल्कि चीन भी था और अगर चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ में एक ही समय में युद्ध शुरू हो जाता, तो हमारे भारत देश की हार निश्चित थी।
इसीलिए सैम मानेकशॉ जी ने इंदिरा गांधी के जंग शुरू करने के आदेश को नकार दिया और वाकई में इंदिरा गांधी जैसे स्ट्रिक्ट प्रधानमंत्री के आदेश का उलघन सिर्फ सैम मानेकशॉ जैसा रोबदार जनरल ही कर सकता था। हालाकि प्रधानमंत्री जी को जंग के लिए मना करने का अपना कारण भी बता दिया और युद्ध की तैयारी करने के लिए थोड़े समय की मांग भी की।
जिसके वजह से भारत और पाकिस्तान के बीच में यह युद्ध 3 दिसंबर 1971 के दिन शुरू हुआ। हालाकि जंग शुरू हुए सिर्फ कुछ ही दिन हो गए थे कि सैम जी को यह बात समझ आ गई थी की अगर यह युद्ध ज्यादा लंबे समय तक चला तो इस में भारत की जीत मुश्किल हो जाएगी। इसीलिए उन्होंने अपने ताकत के साथ ही अपने अक्ल का भी इस्तमाल करना शुरू किया।
और सैम मानेकशॉ जी ने जान बूझकर पाकिस्थान को यह दिखाना शुरू कर दिया की भारत हर एक क्षेत्र मे पाकिस्तान से कितना आगे है। वो ऐसा इसीलिए कर रहे थे क्योंकि पाकिस्तान के सिपाई लड़ने से पहले ही मानसिक रूप से हार जाए और खुद को भारत के सामने सरेंडर करें। और उनकी यह रणनीति वाकई में काम कर गई।
जिसके चलते 16 दिसंबर 1971 के दिन यानी की युद्ध शुरू होने के सिर्फ 13 वे दिन ही पाकिस्तान के सैनिकों ने भारत के सामने घुटने टेक दिए। और बताया जाता है की जिस समय पाकिस्तान ने भारत के सामने सरेंडर किया था, तब वे ना सिर्फ भारतीय सैनिकों से ज्यादा थे, बल्की उनके पास हतीयार भी हमारे सैनिकों से ज्यादा थे।
लेकिन इस बात से अब कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था क्योंकि मानेकशॉ जी ने पहले ही भारत को जीत दिला चुके थे। और दोस्तो यह कोई छोटी मोटी जीत नही थी, बल्की यह पाकिस्तान पर ऐसा कड़ा वार था, जिसने की उसे दो टुकड़ों में बाट दिया। और उसके बाद से दुनिया के अंदर बांग्लादेश के रूप में एक और देश का जन्म हुआ।
इस जीत के बाद से सैम मानेकशॉ जी भारत देश के लिए एक हीरो बन गए, जिन्हे की 1972 में भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्विभूषण से सम्मानित किया गया। और इसके साथ ही 1973 में उन्हे सेना के सबसे बड़े पद फील्ड मार्शल से भी सम्मानित किया गया।
सैम मानेकशॉ की मृत्यु कब हुई? (Sam Manekshaw Death)
हालाकि इस पद से सम्मानित करने के दो हफ्ते के बाद 15 जनवरी 1973 के दिन उन्होंने एक्टिव सर्विस से रिटायरमेंट ले लिया। लेकिन दोस्तो अपने बेबाग अंदाज के लिए वो तब तक जाने गए, जब तक की वे साल 2008 में 94 की उम्र में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
Sam Manekshaw Quotes in Hindi
“अगर कोई तुमसे कहे कि वह कभी नहीं डरता, वह झूठा है या वह गोरखा है।”
“अगर कोई आदमी कहता है कि उसे मरने का डर नहीं है, तो वह या तो झूठ बोल रहा है या फिर गोरखा है।”
युद्ध में भारत की जीत के बाद उनसे पूछा गया कि अगर 1947 में विभाजन के समय उन्होंने पाकिस्तानी सेना के साथ रहने का विकल्प चुना होता तो क्या होता? तो उन्होंने कहा कि तो मुझे लगता है कि पाकिस्तान जीत गया होता।
क्या आपको नहीं लगता कि मैं आपके लिए एक योग्य प्रतिस्थापन बनूंगा, महोदय प्रधानमंत्री? आपकी लंबी नाक है और मेरे पास भी है। लेकिन मैं दूसरे लोगों के मामलों में अपनी नाक नहीं ठोकता।
कई बदलाव हुए हैं लेकिन एक बदलाव वही रहता है जो आपका कार्य और कर्तव्य है। आपको सभी बाधाओं के खिलाफ इस देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। इसका मतलब है कि आपको जीतने के लिए लड़ना होगा और हारने वालों के लिए कोई छत नहीं है। अगर आप हार गए तो वापस मत आना, आपने देश को बदनाम किया होगा और देश आपको स्वीकार नहीं करेगा।
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Conclusion of Sam Bahadur Biography in Hindi
दोस्तो Sam Bahadur Biography in Hindi आर्टिकल के जरिए आज आपने जाना की सैम मानेकशॉ जी कौन है और उन्होंने अपने जीवन में कैसी कैसी मुसीबतों और चुनौतियों का सामना किया था। दोस्तो हमारे द्वारा लिखा हुआ यह आर्टिकल अगर आपको पसंद आया होगा तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर कीजिए।
FAQ Questions & Answers:
सैम बहादुर की कहानी क्या है?
सैम बहादुर की कहानी क्या है, यह जानने के लिए इस पोस्ट को जरुर पढ़े।
सैम मानेकशॉ को कितनी गोलियां लगी थी?
सैम मानेकशॉ को कुल मिलकर 7 गोलियां लगी हुई थी।
सैम मानेकशॉ की मृत्यु कब हुई?
सैम मानेकशॉ की मृत्यु साल 2008 में 94 की उम्र में हुई थी।