Geeta Gyan on Success: नमस्कार दोस्तों, आज के इस आर्टिकल के जरिये में आपके साथ Geeta Ka Gyan हिंदी में share करने वाला हु, जो आपको सफलता प्राप्त करने में बहुत मददगार साबित होंगा। इसलिए दोस्तों इस पोस्ट को अंत तक ध्यान से जरुर पढ़िए।
सफलता प्राप्त करने का पहला सूत्र:
दोस्तों भगवान श्री कृष्ण ने सफलता प्राप्त करने के लिए भगवद गीता के 18 वे अध्याय के 14 वे श्लोक में कहा है “अधिष्टानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम | विविधाश्र्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पत्र्चमम् ”
दोस्तों “अधिष्टानं तथा कर्ता” में “अधिष्टानं” का मतलब है फाउंडेशन यानि की आपका उदेश्य क्लियर होना चाहिए। यानि की मुझे क्या करना है, क्यों करना है और कैसे करना है। यह सब करने वाले व्यक्ति के दिमाग में स्पष्ट होना चाहिए यानि की आपके दिमाग में।
दोस्तों “करणं च पृथग्विधम, विविधाश्र्च पृथक्चेष्टा” का मतलब है “करने वाले व्यक्ति को अपने 5 इन्द्रियों का और अपने पास मौजूद सभी उपकरणों का इस्तमाल करके विविध प्रकार की अलग अलग चेष्टाएँ करनी पड़ेगी।
दोस्तों फिर आखिर में आता है देव कृपा, यानि की जो व्यक्ति ऊपर दिए गए सभी कामों को अच्छे से करता है, उसके ऊपर ईश्वर की कृपा ऑटोमेटिक हो जाती है। और फिर इस प्रकार उस व्यक्ति को सफलता अवश्य मिलती है।
दोस्तों अगर आप भी अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना चाहते हो? तो आपको ऊपर दिए हुए बातो को ध्यान में अवश्य रखना चाहिए। दोस्तों अब जानते है भगवद गीता में दिए गए सफलता के अगले सूत्र के बारे में…
सफलता प्राप्त करने का दूसरा सूत्र:
तस्मादसक्त: सततं कार्य कर्म समाचार |
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुष ||
दोस्तों भगवद गीता के 3 रे अध्याय के 19 वे श्लोक में भगवान श्री कृष्ण कहते है कि “व्यक्ति को अपने कार्य को करते वक्त अपने कार्य से मिलने वाले कर्मफल से आसक्त हुए बिना अपने कार्य को अपना कर्त्तव्य समझकर करना चाहिए। क्यूँकी अनासक्त होकर कर्म करने से उस व्यक्ति को सफलता के साथ साथ ईश्वर की प्राप्ति भी हो जाती है।
दोस्तों इसलिए हमें अपने हर कार्य को करते वक्त अपने कार्य से मिलने वाले कर्मफल से आसक्त हुए बिना अपने कार्य को अपना कर्त्तव्य समझकर करना चाहिए। दोस्तों अब जानते है भगवद गीता में दिए गए सफलता के अगले सूत्र के बारे में…
सफलता प्राप्त करने का तीसरा सूत्र:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन |
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ||
दोस्तों भगवद गीता के 2 रे अध्याय के 47 वे श्लोक में भगवान श्री कृष्ण कहते है कि ” हे अर्जुन, तुम्हे सिर्फ अपना कर्म करने का अधिकार है, किन्तु कर्म के फलों के तुम अधिकारी नहीं हो। और न ही तुम अपने आपको अपने कर्मों के फलों का कारण मानो और न ही तुम कर्म न करने में आसक्ति रखो।
दोस्तों यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण के कहने का मतलब यह है “जब हम अपने कर्म से मिलने वाले फल के बारे में ही सिर्फ सोचने लग जाते है, तब हम अपने काम पर अच्छे से ध्यान नहीं दे पाते है और उसके कारन हम उस काम को अच्छे से नहीं कर पाते है।
इसलिए यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण कह रहे है की हर व्यक्ति को अपने कर्म पर अधिकार है, किन्तु उस कर्म से मिलने वाले फल से अनासक्त होकर कर्म करना चाहिए।
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धन्यवाद हरे कृष्ण – राधे राधे